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Sunday 18 January 2015

दिल्ली की जिला अदालतों के सुनवाई के वित्तीय अधिकार बढ़ाने से किस लॉबी के कारण हिचक रही है मोदी सरकार ? दिल्ली की जनता से अन्याय कब तक ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया] देश की  राजधानी दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है जहां की जिला न्यायालयों में सिर्फ २० लाख तक के वित्तीय मामलों की सुनवाई -होती है और इससे ऊपर के मामलों की सुनवाई दिल्ली उच्चन्यायालय  के अधिकार क्षेत्र में है। देश के अन्य राज्यों में जिला न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में मामलों की सुनवाई के असीमित वित्तीयअधिकार हैं और उच्च न्यायालय सिर्फ अपीलीय न्यायालय के रूप में कार्य करते हैं। दिल्ली की जनता से पिछले लम्बे समय से हो रहे भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कदम  उठाने में श्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार कौनसी ताकतवर लॉबी के कारण हिचक रही है ?जबकि उनके बारें में यह प्रसिद्ध है कि मोदी जी जनहित के काम को करने के लिए किसी के दबाव  में नहीं आते ,वो जनहित को सर्वोपरि मानते हैं। फिर दिल्ली के लोगों के हितों पर कुठाराघात क्यों किया जा रहा है ? आज के समय में दिल्ली में 40  से 5 0 वर्गगज का फ्लैट भी 20 लाख में नहीं मिलता इसीलिए दिल्ली में अधिकांश सम्पति से सम्बन्धित दीवानी केस 20 लाख से ऊपर के होते हैं और उनका निपटारा उच्च न्यायालय में ही हो सकता है। इसी कारण हाईकोर्ट में दीवानी केसों का अम्बार लगा हुआ है और मामलों के निपटारे में लम्बा समय लग जाता है। इस प्रक्रिया में जनता को भी बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है और इंसाफ मिलने में बहुत समय लग जाता है। हाईकोर्ट में एक तो वकीलों की फ़ीस भी जिला अदालतों में कार्यरत वकीलों से कहीं अधिक है और आने -जाने का किराया -भाड़ा अलग से खर्च होता है। तो ऐसे में क्या कारण है कि दिल्ली के लोगों को सुलभ,सस्ता और शीघ्र न्याय देने के लिए देश की केंद्र सरकार अभी तक तैयार दिखाई नहीं दे रही ? मोदी सरकार के इस रुख से जहां जिला अदालतों के वकीलों में रोष है वहीं दिल्ली की जनता भी इससे आहत है और कहीं ऐसा न हो कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसका खामियाज़ा भाजपा को भुगतना पड़ जाये ? वैसे वकीलों की एक लॉबी में यह भी चर्चा जोरों से चल रही है कि एक तो सरकार ने जिला अदालतों के सुनवाई के वित्तीय अधिकार को नहीं बढ़ाया ऊपर से किरण बेदी को भाजपा में लाकर उनके  नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा करके वकीलों के जख्मों को हरा कर दिया है। भाजपा का यह कदम तो कोढ़ में खाज बढ़ाने जैसा प्रतीत होता है। ज्ञात हो कि सन 1988 में दिल्ली पुलिस में डीसीपी रहते हुए किरण बेदी के नेतृत्व में  पुलिस जवानों ने तीस हज़ारी कोर्ट परिसर में  घुसकर वकीलों पर भयंकर लाठीचार्ज किया था जिसमें असंख्य वकीलों के सिर फैट गए थे और बहुत की हड्डियां-पसलियां तक टूट गईं थीं और इसके विरोध में वकीलों ने लंबी लड़ाई लड़कर बेदी का तबादला करवा दिया था। कहा जाता है कि वकीलों के विरोध के कारण ही केंद्र सरकार बेदी को दिल्ली का पुलिस आयुक्त बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। ऐसे में भाजपा के इस कदम का चुनावों पर क्या असर होगा यह तो समय ही बताएगा ?

    दिल्ली की जिला अदालतों के वित्तीय न्यायिक अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिए स्थानीय वकीलों द्वारा काफी लम्बे समय से मांग की जा रही है और इसको लेकर कई बार जिला अदालतों में हड़ताल भी की जा चुकी है ,परन्तु मोदी जी भी इस मामले में अपने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के पदचिन्हों पर ही चलते दिखाई दे रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि मनमोहन सरकार के रहते भी उसमें सबसे प्रभावशाली मंत्री के रूप में पेशे से वकील और दिल्ली से ताल्लुक रखनेवाले श्री कपिल सिब्बल शामिल थे और अब नरेंद्र मोदी जी के सबसे नज़दीक और उन की सरकार में भी सबसे शक्तिशाली माने जानेवाले मंत्री श्री अरुण जेटली शामिल हैं  और पेशे से वकील होने के साथ ही वह दिल्ली के नागरिक हैं , इसके उपरांत भी अगर दिल्ली की जनता को न्याय नहीं मिलता तो सोचने को मजबूर होना ही पड़ता है। अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली में इस मांग को लेकर सभी जिला अदालतों की बार एसोसिएशंस ने हड़ताल की थी औरदिल्ली  भाजपा के नेताओं ने इस बात का आश्वासन देकर कि संसद के शीतकालीन  अधिवेशन में ही इस संबंध में सरकार विधेयक लाकर कानून बनाने जा रही है , इस आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त हो गई। मजेदार बात यह है कि इस बारें में दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने प्रेसवार्ता करके यह दावा भी किया कि दिल्ली की जनता को शीघ्र ही अपने 20 लाख से ऊपर के दीवानी  मामलों की सुनवाई के लिए अब उच्च न्यायालय नहीं जाना पड़ेगा अर्थात लोगों को कम समय ,कम खर्च और सुलभ न्याय उनके जिले की अदालत में मिल जायेगा। कुछ भाजपा के अतिउत्साही वकीलों ने तो लोकसभा में पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी द्वारा इस संबंध में उठाई गई मांग को भी खूब प्रचारित और प्रसारित किया,  लेकिन परिणाम वही  ढाक के तीन पात ,चौथा लगे न पांचवे की आस की कहावत वाला ही रहा। बड़े अफ़सोस की बात है कि संसद का अधिवेशन भी सम्पन्न हो गया और केंद्र सरकार ने कई ऐसे विधेयकों को ,जो विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए थे ,राष्ट्रपति से अध्यादेश जारी करवाकर कानून के रूप में लागु कर दिया। अगर सरकार की मंशा दिल्ली की जनता को सुलभ और शीघ्र  न्याय देने की रही होती तो अवश्य ही दिल्ली की जिला अदालतों को असीमित वित्तीय अधिकार देने का कानून भी अध्यादेश के द्वारा लागु कर देती, परन्तु ऐसा न करके जनता के साथ नाइंसाफी की गई। इसका क्या कारण है यह तो सत्ता में बैठे महानुभाव ही भली -भांति जानते हैं, लेकिन यह बात जरूर समझी जा सकती है कि कोई न कोई एक प्रभावशाली ताकत जरूर है जिसके दबाव में न तो यूपीए सरकार और न ही अब नरेंद्र मोदी सरकार दिल्ली की जनता को सुलभ ,सस्ता और शीघ्र न्याय दिलाने में गंभीर दिखती है।दिल्ली हाईकोर्ट में भी वकीलों के दो वर्ग हैं एक तो साधारण और दूसरे वरिष्ठ अधिवक्ता जिनमें समाज के संभ्रांत वर्ग से जाते हैं। ऐसा -कहा जाता है कि वकीलों की यह लॉबी अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए ही सरकार पर अपना दबाव बनाए रखने में सक्षम हैं। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि वो कौन सी ऐसी लॉबी है जो दिल्ली की जनता के हितों पर कुठाराघात करके उच्च न्यायालय में कार्यरत वरिष्ठ वकीलों के हितों का पोषण कर रही है क्योंकि उच्च न्यायालय के वकील जिला अदालतों के वित्तीय अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं।