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Sunday 22 March 2015

आज़ाद भारत की सरकारों ने आज़ादी का सारा श्रेय सिर्फ गांधी -नेहरू तक सीमित करके असंख्य भारत माँ के सपूतों के साथ अन्याय किया। शहीदी -दिवस पर भारत माँ सपूतों के चरणों में हमारा शत -2 नमन।

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] , भारत माँ को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए असंख्य सपूतों ने अपने प्राणो की आज़ादी की लड़ाई मेंआहुति दे दी।भारत माँ के इन सपूतों में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। आज इनके बलिदान दिवस पर हम इनके चरणों में अपना शत -२ नमन करते हैं।भारत माँ के इन  सपूतों  की कुर्बानी के कारण ही हम आज आज़ादी से साँस ले रहे हैं। इनका ऋण हम कभी नही उतार सकते। अफ़सोस है की बात यह है कि आज़ाद भारत की सरकारों ने आज़ादी का सारा श्रेय सिर्फ गांधी - नेहरू तक सीमित करके असंख्य भारत माँ के सपूतों के साथ अन्याय किया।  आज के दिन  23 मार्च , 1931 को भारत में अंग्रेजी सरकार ने आज़ादी के दीवाने भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटका दिया गया था।यह दिन भारत में शहीदी -दिवस के रूप में याद किया जाता है।  शहीद दिवस के मौके पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि देने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हुसैनीवाला गॉव जा रहे हैं, जहां इन शहीदों की समाधियों पर अपनी श्रद्धांजलि देंगे। इसके बाद पीएम मोदी स्वर्ण मंदिर और जलियांवाला बाग भी जाने वाले हैं। जानकारी के अनुसार, पीएम मोदी दोपहर एक बजे पंजाब के फिरोजपुर में हुसैनीवाला पहुंचेंगे। हुसैनीवाला में तीनों शहीदों की समाधि है। 23 मार्च 1931 को ही अंग्रेजों ने शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी थी। शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर दो बजे अमृतसर में स्वर्ण मंदिर मत्था टेकने जाएंगे। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार स्वर्ण मंदिर पहुंचेंगे। वह शहीदों को श्रद्धांजलि देने जालियांवाला बाग भी जाएंगे। 13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर ने यहीं पर निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोलियां चलवाई थीं।
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को गॉव बंगा जिला लायलपुर पंजाब [ अब पाकिस्तान ] में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। उनके परिवार पर आर्य समाज व महर्षि दयानन्द की विचारधारा का गहरा प्रभाव था ! अधिकांश क्रांतिकारियों को देश प्रेम की प्रेरणा महर्षि दयानन्द के साहित्य व आर्य समाज से मिली ! अमृतसर में १३ अप्रैल १९१९ को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।
       भगत सिंह  पहले एक किशोर के रूप में ब्रिटिश राज के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए  था और क्रांति करने के लिएआज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े। एक धर्म प्रयाण परिवार में जन्मे भगत सिंह बाद एक नास्तिक बन गए और यूरोपीय क्रांतिकारी आंदोलनों का अध्ययन करके वे अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन की ओर आकर्षित हो गए । उन्होंने कई क्रांतिकारी संगठन में शामिल हो कर आज़ादी के संग्राम की अलख जगाने का अदभुत  काम किया । भगत सिंह  ने जब जेल में 64 दिन का उपवास किया।उन्होंने  भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक कैदियों के लिए समान अधिकार की मांग की । उन्होंने कहा कि पुलिस लाठीचार्ज में  वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के निधन के प्रमुख आरोपी के जवाब में एक पुलिस अधिकारी की शूटिंग के लिए फांसी पर लटका दिया गया था। उनकी विरासत भारत में युवा प्रेरित भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ाई शुरू करने और भारत में समाजवाद की वृद्धि करने के लिए योगदान दिया।भगत सिंह ने लिखा कि 
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी।