दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] दुनिया में जिस गति से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है उसको लेकर कई अन्य धर्म को माननेवाले लोगों में यह चिंता का विषय है बनता जा रहा है, परन्तु धर्मनिरपेक्षता की बीमारी से ग्रस्त हिन्दू इससे सचेत नहीं हुआ। इतिहास साक्षी है कि मुस्लिम आक्रान्ताओं के जुल्मों और अत्याचारों का सबसे अधिक शिकार भारत और हिन्दू समाज ही हुआ है। इस चिंता का कारण भी जायज है ,क्योंकि जिस किसी भी क्षेत्र या देश में मुस्लिम बहुलता हुई वहां पर न तो लोकतंत्र ही जिन्दा रहा और न ही धर्मनिरपेक्षता नाम की कोई वस्तु शेष रही। इसका ताज़ा उदाहरण इराक ,ईरान, अफगानिस्तान और 1947 में भारत से काटकर अलग किये गए क्षेत्र जिसको पाकिस्तान का नाम दिया गया और 1971 में उससे अलग करके बने बांग्लादेश नामक इस्लामिक देश हैं। और तो और भारत के कश्मीर की हालत भी हमारे सामने है वहां मुस्लिम आबादी अधिक होने के कारण किस तरह से हिन्दू -सिखों को मारा गया और उनको अपने घरों से बेघर कर दिया गया। इन मुस्लिम देशों में कैसा लोकतंत्र है ?कैसी धर्मनिरपेक्षता है और कैसी सामाजिक शांति है? सभी भली -भांति जानते हैं। इन देशों में गैर मुस्लिमों की दुर्दशा का जीता -जगता प्रमाण आज इराक ,सीरिया ,पाकिस्तान और बांग्लादेश में देखा जा सकता है ?अफ़सोस है कि लगभग 700 वर्षों तक मुस्लिम आक्रांताओं की गुलामी में रहकर हिन्दुओं ने जिन अत्याचारों और आतंक को झेला उससे हिन्दू समाज ने कोई सबक नहीं सीखा है और लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजी शासकों की गुलामी के बाद भी हम सचेत नहीं हैं क्यों ?अगर आज कोई हिन्दू नेता हिन्दुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह देता है तो सबसे पहले मीडिया हो -हल्ला मचाता है और उसके बाद धर्मनिरपेक्षता के कथित झंडाबरदार हंगामा करके अपने को देश के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करते हैं ,क्यों ? क्यों इनमें से कोई भी यह बात नहीं करता कि एक जेहादी एजेंडे के तहत दिन -रात बढ़ाई जा रही मुस्लिम बच्चों की पैदावार पर सरकार रोक लगाए ? आज़ाद भारत में समानता का ढोल पीटने वाले शासक और राजनैतिक -समाजिक -धार्मिक नेता यह बताएं कि सारी पाबंदियां हिन्दुओं पर ही क्यों ? आज ऐसे हिन्दुओं की भी कमी नहीं है जो सिर्फ पैसा कमाने और ऐशो -आराम के संसाधनों को एकत्र करने में ही जुटे हुए हैं। उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आनेवाले दशकों में अगर मुस्लिम इसी गति से बच्चों की पैदावार करते रहे और हिन्दू सिर्फ एक -दो पर ही अटके रहे तो उनकी आनेवाली नस्लों का क्या होगा ?क्या भारत में भी सीरिया -इराक जैसे हालत पैदा होने से कोई रोक पायेगा ? क्या मुस्लिम बहुल होते ही भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बच पायेगी ? इस बात का चिंतन आज हिन्दुओं को करना होगा और भारत की सरकार पर यह दवाब बनाना होगा कि वह राष्ट्र और मानवता के हित में सभी धर्मावलम्बियों से परिवार नियोजन का नियम सख्ती से लागू करवाए और इसको न माननेवालों से सभी सरकारी सुविधाएँ छीन ले। अगर सरकार ऐसा कानून नहीं लागू करती है तो हिन्दू भी एक -दो बच्चों को पैदा करने की मानसिकता को छोड़कर अपनी आनेवाली नस्लों ,अपने धर्म और अपने देश के भविष्य को खतरे में पड़ने से बचाने के लिए अधिक बच्चे पैदा करें।इसी में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की भलाई है और इसी में भारत में शांति कायम रह सकती है और उसका भविष्य भी उज्जवल है।केंद्र
Saturday 4 April 2015
केंद्र सरकार राष्ट्र और मानवता के हित में सभी धर्मावलम्बियों से परिवार नियोजन का नियम सख्ती से लागू करवाए और इसको न माननेवालों से सभी सरकारी सुविधाएँ छीन ले।
दिल्ली [अश्विनी भाटिया ] दुनिया में जिस गति से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है उसको लेकर कई अन्य धर्म को माननेवाले लोगों में यह चिंता का विषय है बनता जा रहा है, परन्तु धर्मनिरपेक्षता की बीमारी से ग्रस्त हिन्दू इससे सचेत नहीं हुआ। इतिहास साक्षी है कि मुस्लिम आक्रान्ताओं के जुल्मों और अत्याचारों का सबसे अधिक शिकार भारत और हिन्दू समाज ही हुआ है। इस चिंता का कारण भी जायज है ,क्योंकि जिस किसी भी क्षेत्र या देश में मुस्लिम बहुलता हुई वहां पर न तो लोकतंत्र ही जिन्दा रहा और न ही धर्मनिरपेक्षता नाम की कोई वस्तु शेष रही। इसका ताज़ा उदाहरण इराक ,ईरान, अफगानिस्तान और 1947 में भारत से काटकर अलग किये गए क्षेत्र जिसको पाकिस्तान का नाम दिया गया और 1971 में उससे अलग करके बने बांग्लादेश नामक इस्लामिक देश हैं। और तो और भारत के कश्मीर की हालत भी हमारे सामने है वहां मुस्लिम आबादी अधिक होने के कारण किस तरह से हिन्दू -सिखों को मारा गया और उनको अपने घरों से बेघर कर दिया गया। इन मुस्लिम देशों में कैसा लोकतंत्र है ?कैसी धर्मनिरपेक्षता है और कैसी सामाजिक शांति है? सभी भली -भांति जानते हैं। इन देशों में गैर मुस्लिमों की दुर्दशा का जीता -जगता प्रमाण आज इराक ,सीरिया ,पाकिस्तान और बांग्लादेश में देखा जा सकता है ?अफ़सोस है कि लगभग 700 वर्षों तक मुस्लिम आक्रांताओं की गुलामी में रहकर हिन्दुओं ने जिन अत्याचारों और आतंक को झेला उससे हिन्दू समाज ने कोई सबक नहीं सीखा है और लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजी शासकों की गुलामी के बाद भी हम सचेत नहीं हैं क्यों ?अगर आज कोई हिन्दू नेता हिन्दुओं को अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह देता है तो सबसे पहले मीडिया हो -हल्ला मचाता है और उसके बाद धर्मनिरपेक्षता के कथित झंडाबरदार हंगामा करके अपने को देश के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करते हैं ,क्यों ? क्यों इनमें से कोई भी यह बात नहीं करता कि एक जेहादी एजेंडे के तहत दिन -रात बढ़ाई जा रही मुस्लिम बच्चों की पैदावार पर सरकार रोक लगाए ? आज़ाद भारत में समानता का ढोल पीटने वाले शासक और राजनैतिक -समाजिक -धार्मिक नेता यह बताएं कि सारी पाबंदियां हिन्दुओं पर ही क्यों ? आज ऐसे हिन्दुओं की भी कमी नहीं है जो सिर्फ पैसा कमाने और ऐशो -आराम के संसाधनों को एकत्र करने में ही जुटे हुए हैं। उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आनेवाले दशकों में अगर मुस्लिम इसी गति से बच्चों की पैदावार करते रहे और हिन्दू सिर्फ एक -दो पर ही अटके रहे तो उनकी आनेवाली नस्लों का क्या होगा ?क्या भारत में भी सीरिया -इराक जैसे हालत पैदा होने से कोई रोक पायेगा ? क्या मुस्लिम बहुल होते ही भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता बच पायेगी ? इस बात का चिंतन आज हिन्दुओं को करना होगा और भारत की सरकार पर यह दवाब बनाना होगा कि वह राष्ट्र और मानवता के हित में सभी धर्मावलम्बियों से परिवार नियोजन का नियम सख्ती से लागू करवाए और इसको न माननेवालों से सभी सरकारी सुविधाएँ छीन ले। अगर सरकार ऐसा कानून नहीं लागू करती है तो हिन्दू भी एक -दो बच्चों को पैदा करने की मानसिकता को छोड़कर अपनी आनेवाली नस्लों ,अपने धर्म और अपने देश के भविष्य को खतरे में पड़ने से बचाने के लिए अधिक बच्चे पैदा करें।इसी में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की भलाई है और इसी में भारत में शांति कायम रह सकती है और उसका भविष्य भी उज्जवल है।केंद्र
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