दिल्ली।अब देश में राष्ट्रवादियों और राष्ट्रविरोधियों के बीच संघर्ष छिड़ चुका है और इससे कोई भी नागरिक अछूता नहीं रह सकता। देश के हर नागरिक का यह कर्तव्य भी होता है कि वह अपने देश के विरुद्ध उठनेवाली किसी भी आवाज़ को हमेशा -हमेशा के लिए शांत कर दे। एक ओर जहां देश के प्रबुद्ध नागरिकों ने देश विरोधियों के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद कर दी है वहीं विरोधी दलों के कई नेताओं ने अपना समर्थन जेएनयू में राष्ट्रविरोधी औरआतंकवादियों के समर्थक छात्रों को देकर अपना राष्ट्र विरोधी चेहरा जनता के सामने उजागर कर दिया हैं। अब तो पूरी तरह से यह साबित हो रहा है कि जेएनयू देशविरोधियों को पैदा करनेवाला एक शिक्षण संस्थान है जहां उच्च शिक्षा के नाम पर देश के युवाओं के दिलों में अलगाववाद और देशविरोध की भावना को भरने का षड्यंत्र बरसों से किया जा रहा है। अभिव्यक्ति के नाम पर नक्सलवाद आतंकवाद अलगाववाद और देशद्रोह को जायज़ ठहरनेवालों की भीड़ जेएनयू में भरी हुयी है और उसकी भयानक तस्वीर गत 9 फ़रवरी की उसके परिसर में घटी घटना है। भारत के टुकड़े - टुकड़े करने और इसकी बर्बादी तक जंग करने वाले देशद्रोह के आरोपी छात्रों को बचाने के लिए राहुल गांधी अरविन्द केजरीवाल और वामपंथी नेताओं की जमात भी निकल आई है। कांग्रेस वामपंथी जेडीयू बीएसपी आप जैसी पार्टियां प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते - करते अब देशविरोध पर उतर आईं हैं। देश में अलगाववाद और आतंकवाद को समर्थन देने पर कई मीडिया संस्थान भी बराबर के भागीदार बने हुए हैं।अपनी इसी रणनीति के तहत यह मिडिया चैनल जानबूझकर जेएनयू में देशविरोधी घटना की बजाय पटियाला हाउस कोर्ट में देश के विरुद्ध नारेबाजी करनेवालों की पिटाई को अपनी बहस का मुख्य मुद्दा बनाए हुए हैं। कुछ पत्रकार अपने को देश से ऊपर की वस्तु मानकर राष्ट्रविरोध को अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी की संज्ञा दे रहे हैं और इनकी इस हरकत को देश की जनता भी बड़ी गहनता से पहचान चुकी है।
Wednesday 24 February 2016
अब संघर्ष राष्ट्रवादियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों के बीच कोई नहीं रह सकता निरपेक्ष
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