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Tuesday 14 June 2016

यूपी बिहार से पढ़कर आये डॉक्टर्स को गधा मानती है दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल की डॉ स्वागता ?

दिल्ली [अश्विनी भाटिया ]।सरकार के लाख दावों के बावजूद सरकारी अस्प्ततालों में कार्यरत डॉक्टर गरीब लोगों का इलाज करने की बजाय उनको दुत्कारना अपना अधिकार समझते हैं। इन अस्पतालों में चाहे वो दिल्ली सरकार के अधीनस्थ हो या फिर केंद्र सरकार के अधीन , सभी में कार्यरत डॉक्टर और दूसरे कर्मचारी अपनी घटिया सोच बदलने को तैयार नहीं हैं और न ही इनको सुधारने में केजरीवाल और मोदी सरकार सफल होती दिखाई देती है।  दिल्ली में स्थित जीबी पंत अस्प्ताल मेंताल मरीजों का इलाज करने में वहां का स्टाफ अपनी हेठी समझता है. यहां के पूछताछ केंद्र पर लोगों को संतोषजनक जानकारी नहीं दी जाती है।रोगियों की सहायता  लिए बनाए गए रोगी सहायता केंद्र के कर्मचारी भी लोगों की मदद करने की बजाय अपना दरवाज़ा बंद करके बैठे रहते हैं और अगर कोई अंदर जाने की हिमाकत करें तो उसको डांट -डपट कर बाहर निकाल देते हैं। गत 10 जून को इसी तरह का प्रकरण यहां देखने में आया है। इस दौरान यह सवांददाता भी वहीं उपस्थित था और  जब इस संबंध में पंत अस्पताल के निदेशक से बात करनी चाही तो उनके कमरे के बाहर बैठे कर्मचारी ने बताया कि साहब छुट्टी पर हैं उनसे नहीं मिला जा सकता। विस्तृत प्रकरण इस प्रकार है कि बड़ौत के एक गांव में रहनेवाले रामपाल को 2 दिंन पहले तेज़ बुखार हो गया और वह अचेत होकर अपने खेत में ही गिर गया था। उसके परिवार वाले उसको वहां प्राथमिक इलाज करवाने के बाद नवीन शाहदरा में रहनेवाले उनके दामाद प्रवीण के यहां ले आए ताकि उनका इलाज सही तरह से हो सके।प्रवीण ने उनको 10 जून को छोटा बाजार शाहदरा स्थित नगर निगम के सिविल अस्पताल में दिखाया।सिविल अस्पताल के डॉकटर ने उनका परीक्षण करने के बाद बताया कि मरीज़ को न्यूरो के डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा और जीबी पंत अस्पताल में बिना देर किये ले जाने को कहा  और उनको वहीं के लिए रैफर स्लिप बना दी। यह लोग जब करीब 1 बजे दोपहर पंत अस्पताल के आपत्कालीन केंद्र पहुंचे तो उनको पूछताछ केंद्र पर जाने को कहा गया जब वह वहां गए तो वहां बैठे कर्मचारी ने पर्चा देखकर कहा कि अब कार्ड बनने का टाइम खत्म हो गया है। कल सुबह 4 बजे आकर लाइन में लग जाना और अपना कार्ड बनवा लेना। प्रवीण ने अपने किसी परिचित से इस संबंध में बात करके सहायता मांगी। उनके मिलनेवाले ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य समिति के प्रमुख अनिल बाजपेई विधायक  के कार्यालय में बात करके उनको कहा कि कहा कि वे वह लोग कमरा न. 38 में बने रोगी सहायता केंद्र में जाकर डॉ स्वागता से मिल लें उनकी समस्या का निदान हो जायेगा।जब वह रोगी सहायता केंद्र में गए तो वहां बैठी 3 महिलाकर्मियों ने उनकी बात नहीं सुनी और डांट दिया और बाहर जाने को कहा। इस पर प्रवीण ने फिर अपने परिचित से यह बात बताई तो उसने उनसे डॉ स्वागता से फोन पर बात करने को कहा। बड़ी मुश्किल से डॉ स्वागता का न. लेकर उनसे बात की गई। काफी देर बाद डॉ स्वागता  आई और उनकी बात सुनकर बोली कि यह वी आई पी अस्पताल है यहां हर किसी का इलाज नहीं हो सकता। शिकायत करता ने जब उनको कहा कि उनको सिविल अस्पताल से यहां रैफर किया गया है तो वह पर्चा देखकर आपसे बाहर हो गईं। वह बड़ी तमतमाती हुई बोलीं कि  दिल्ली  नगर निगम न तो कोई सरकारी संस्थान है और  न ही उनमें बैठे डॉक्टर कुछ जानते हैं।वो कहती हैं कि नगर निगम के डॉक्टर गधे हैं जो यूं पी बिहार से फ़र्ज़ी डिग्री लेकर आए हुए हैं।इनको न तो कोई जानकारी है और न ही कोई अनुभव है। जब उनसे मरीज़ के परिवार वालों ने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि दिल्ली नगर निगम के डॉक्टर क्या हैं? तो उन्होंने कहा कि  वह तो सिर्फ किसी प्राइवेट अस्पताल या डॉक्टर के लिखी गयी सिफारिश को ही मानती हैं , तुम भी किसी प्राइवेट अस्पताल में चले जायो और वहां से रैफर करवा लायो।जब मरीज के सबंधी ने कहा कि वो गरीब हैं और प्राइवेट में नहीं जा सकते तो  डॉक्टर महोदया तमतमा कर बोली कि ''मैं दिल्ली की हूँ और हमने यूपी -बिहार के लोगों का ठेका नहीं लिया हुआ जो मुंह उठाकर यहां इलाज करवाने चले आते हैं।'अब सवाल यह उठता है कि जीबी पंत की इस डॉक्टर को रोगियों की सहायता के लिए तैनात किया गया है या नगर निगम के डॉक्टर्स की डिग्रियां जाँच करने का जिम्मा दिया गया है।इस तरह के व्यवहार से क्षुब्ध प्रवीण का कहना है कि इस डॉक्टर साहिबा को यू पी बिहार से क्या नफरत है ,जो वह अपने मन में इन राज्यों के प्रति इतनी दुर्भावना पाले हुए हैं ? इसकी उच्च स्तरीय जाँच पड़ताल होनी बहुत आवश्यक है। प्रवीण ने इस संबंध में एक शिकायत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और दिल्ली के एल जी ,सी एम सहित उच्च प्रशासनिक अधिकारीयों से करने का मन बनाया है और वह कहते हैं कि ऐसे डॉक्टर्स के विरुद्ध सख्त एक्शन होना चाहिए जो भारी - भरकम सरकारी वेतन लेकर भी गरीब जनता को सेवाएं देना तो दूर बल्कि दुर्व्यवहार करना अपना अधिकार समझते हैं। जबकि इनको इसी काम के लिए वेतन मिलता है कि वह जनता को अपनी सेवाएं दें।अब सवाल यह उठता है कि जीबी पंत की इस डॉक्टर को रोगियों की सहायता के लिए तैनात किया गया है या नगर निगम के डॉक्टर्स की डिग्रियां जाँच करने का जिम्मा दिया गया है। इस तरह के व्यवहार से क्षुब्ध प्रवीण जो कि स्वयं भी पेशे से वकील हैं का कहना है कि इस डॉक्टर साहिबा को यूपी- बिहार से क्या नफरत है,जो वह अपने मन में इन राज्योंऔर उनमें रहनेवाले लोगों  के प्रति इतनी दुर्भावना पाले हुए हैं ? इसकी उच्च स्तरीय जाँच पड़ताल होनी बहुत आवश्यक है।दुःख की बात यह है कि जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देने की अपनी मूलभूत जिम्मेदारी हमारे देश और राज्य की सरकारें अपना पल्ला झड़ चुकी लगती हैं। जनता को निजी अस्पतालों की ओर धकेलने में लगी सरकारी मशीनरी का इसमें  पता नहीं क्या छुपा स्वार्थ है कि वह आम जनता को यह सन्देश देने में सफल होती दिखी दे रही है कि सरकारी अस्पतालों में धक्के खाने के बावजूद समय पर उपचार नहीं हो सकता।अतः विवश होकर लोगों को या तो निजी अस्पतालों के चंगुल में फँसना पडता है या बिना इलाज के ही अकाल मौत की आगोश में समाना पड़ रहा है।